बिठूर के दर्शनीय स्थल - Bithoor history in hindi

दोस्तों आज हम इस लेख में एक ऐसे प्राचीन नगर के बारे में विस्तार से जानेगें जिसके बारे में कहा जाता है कि जब इस सृष्टि का पुनर्सृजन विष्णु जी द्वारा किया गया तो यह नगर भगवान ब्रह्मा जी रहने का स्थान था

बिठूर के दर्शनीय स्थल - Bithoor history in hindi

नमस्कार दोस्तों, मैं गौरव शर्मा एक बार फिर अपने लेख में आप सबका स्वागत करता हूँ और आशा करता हूँ कि आप तथा आपका परिवार पूर्णतः कुशल मंगल होगा। दोस्तों आज हम इस लेख में एक ऐसे प्राचीन नगर के बारे में विस्तार से जानेगें जिसके बारे में कहा जाता है कि जब इस सृष्टि का पुनर्सृजन विष्णु जी द्वारा किया गया तो यह नगर भगवान ब्रह्मा जी रहने का स्थान था। इसी शहर में रामायण की रचना की गई,यह शहर जितना अपनी अलौकिक प्राचीनता के लिए प्रसिद्ध है उससे कहीं अधिक इसकी प्रसिद्धि का कारण 1857 की क्रांति के महानायकों के निवास स्थान के कारण भी है। दोस्तों आज हम इस लेख में कानपुर,उत्तर प्रदेश, के पास गंगा नदी के किनारे बसे बिठूर नामक छोटे से ऐतिहासिक व धार्मिक शहर के बारे मे जानेगे।

भगवान ब्रह्मा से संबंध - Relation with God Brahma in hindi

ऐसा माना जाता है कि जब भगवान विष्णु द्वारा इस ब्रह्मांड का पुनर्सृजन किया गया था तो भगवान ब्रह्मा के निवास स्थान के लिए उन्होंने यह स्थान बनाया, फिर उसके बाद जब भगवान ब्रह्मा जी ने मानव जीवन की रचना का प्रारंभ किया तो इसी स्थान पर उन्होंने सर्वप्रथम प्रथम पुरुष मन्नू तथा प्रथम स्त्री सतरूपा का सृजन भी इसी स्थान पर किया था। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान ब्रह्मा ने अपने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया था तो उस अश्वमेध यज्ञ के घोड़ों में से एक घोड़े की नाल निकल गई जो आज भी बिठूर में स्थित वन में संरक्षित है।

ध्रुव टीला-राजकुमार ध्रुव से ध्रुव तारे का सफर - 

इस स्थान की अलौकिकता का एक और उदाहरण सम्राट उत्तानपाद के शासनकाल से मिलता है।

सम्राट उत्तानपाद के पुत्र राजकुमार ध्रुव भगवान ब्रह्मा के बहुत बड़े भक्त थे, ऐसा माना जाता है कि एक बार बचपन में राजा उत्तानपाद की दूसरी रानी ने राजकुमार ध्रुव को राजसिंहासन से उतार कर अपने पुत्र को राज़ सिंहासन पर विराजमान कर दिया था, इस घटना का प्रभाव राजकुमार ध्रुव पर इतना राजकुमार ध्रुव पर इतना हुआ कि उन्होंने मन ही मन निश्चित कर लिया की उन्हें जीवन में जीवन में एक ऐसा स्थान प्राप्त करना है जहाँ से उन्हें उनकी दूसरी माता तो क्या संसार को कोई मानव ना उतार सके, इसी दृढ़ निश्चय के साथ राजकुमार ध्रुव ने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने राजकुमार ध्रुव को अमरता का वरदान दिया तथा उन्हें आकाशगंगा में एक ऐसा स्थान दिया जिसे कोई भी नहीं बदल सकता इस प्रकार राजकुमार ध्रुव आकाशगंगा में चमकता सितारा बन गए, यह जो घटना मैंने आप सबको बताई यह जो घटना मैंने आप सबको बताई है यह घटना बिठूर में स्थित ध्रुव टीले पर घटित हुई है, इसी ध्रुव टीले पर राजकुमार ध्रुव ने कठिन तपस्या की थी।

रामायण की रचना - Creation of Ramayan

ऐसी मान्यता है कि जब महर्षि वाल्मीकि को आत्मज्ञान प्राप्त हुआ और उन्होंने अपने निवास के लिए एक उचित स्थान का निरीक्षण किया तो पाया कि गंगा किनारे बसा यह छोटा सा शहर बिठूर उनके लिए सबसे उपयुक्त स्थान होगा, महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण की रचना भी इसी स्थान पर की गई थी, आज के समय में भी बिठूर में मैं ऋषि वाल्मीकि का आश्रम स्थित है, ऐसा माना जाता है कि साधु बनने से पहले वाल्मीकि एक निष्ठुर डाकू हुआ करते थे परन्तु किसी एक घटना के कारण उनका पूरा जीवन बदल गया और वह डाकू वाल्मीकि से श्री रामचरित्र मानस रचयिता भगवान श्री बाल्मिकी बन गए और बिठूर उनका निवास स्थान हुआ तो दोस्तों यदि आप महाऋषि वाल्मीकि कि जीवन के बारे में और जानकारी चाहते है या वह स्थान देखना चाहते हैं जहाँ रामचरित मानस की रचना हुई थी तो बिठूर एक बार अवश्य जाएं।

बिठूर का सीता माता से संबंध - Connection between Sita Mata and Bithoor

राम रावण युद्ध के पश्चात् अयोध्यानगरी में बहुत दिनों तक खुशी का माहौल था परन्तु 1 दिन जब श्री रामचन्द्र भगवान जी अपनी प्रजा के बीच वेश बदलकर गए और एक ऐसी घटना देखी जिसके कारण उन्होंने महारानी सीता को देश निकाला दिया तब श्री लक्ष्मणजी माता सीता को लेकर वन की ओर चले और माता सीता को वन में छोड़ कर वापस अयोध्या लौट गए परन्तु माता सीता को वन में महर्षि वाल्मीकि मिले और उन्हें वह अपने आश्रम मैं ले आए जो कि बिठूर में स्थित महारानी सीताने बिठूर में स्थित महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में जीवन यापन करना प्रारंभ किया तथा कुछ समय बाद उन्होंने इसी आश्रम में लव तथा कुश को भी जन्म दिया। आज के समय में भी आपको बिठूर में वह स्थान देखने के लिए मिल जाता है जहाँ माता सीता अपना तथा अपने पुत्रों लव तथा कुश के लिए भोजन तैयार करती थी इस स्थान को सीता-रसोई के नाम से आज भी पूर्णतः संरक्षित करके पर्यटकों के लिए रखा गया है। ऐसी मान्यता है कि जब भगवान राम ने अश्व अश्वमेध यज्ञ कराया और उसका घूमता फिरता लव तथा कुश द्वारा पकड़ लिया गया तो उसे छुड़ाने के लिए बारी बारी से राजकुमार शत्रुघ्न, राजकुमार लक्ष्मण, राजकुमार भरत तथा महाबली हनुमान ने बिठूर स्थित वन में राजकुमार लव तथा कुछ से युद्ध किया था, परंतु बाद में भगवान राम के आ जाने के बाद वाल्मीकि ने लव तथा कुश से अश्वमेध के छोड़ने के लिए अनुरोध किया तो उन्होंने अश्वमेध यज्ञ के अश्व को भगवान राम को वापस कर दिया था।

ऐसा भी माना जाता है कि जब भगवान राम ने सीता माता से दोबारा अग्निपरीक्षा के लिए कहा तो उन्होंने बिठूर में ही धरती माता की गोद में जानें का निर्णय लिया इस स्थान को बिठूर के लोग सीता पाताल के नाम से जानते हैं। ऐसा माना जाता है कि सीता रसोई के पास से स्वर्ग तक जाने की सीढ़ियां स्थित है, त्रेता काल में इन्हीं सीढ़ियों का प्रयोग कर कर धरती से स्वर्ग तक का आवागमन होता था।

1857 की क्रांति से बिठूर का संबंध - 

बिठूर का संबंध 1857 की क्रांति से बहुत निकटता से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि एक समय में बिठूर में ही झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सहित 1857 की क्रांति के अत्याधिक महानायकों का निवास स्थान यही बिठूर है। ब्रिटिश राज़ के दौरान बिठूर संयुक्त प्रांत में कानपुर जिले का हिस्सा हुआ करता था।ऐसा माना जाता है कि मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब को बिठूर से निर्वासित करने के बाद भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने बिठूर को अपना गढ़ बना लिया था। रानी लक्ष्मी बाई, नाना साहिब, रामचन्द्र पांडुरंग, तथा तात्या टोपे जैसे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ़ यही से युद्ध का बिगुल फूंका था नाना साहिब के नेतृत्व में कानपुर की घेराबंदी के दौरान 400 से अधिक ब्रिटिश सैनिकों की हत्या की गई थी।

परंतु इसके बाद 19 जुलाई 1875 को जनरल हैवलॉक ने बिठूर पर कब्जा कर लिया तथा यहाँ के किले घाटों तथा मंदिरों को आग लगा दी जिसमे नानासाहेब की 14 वर्षीय पुत्री मैनावती भी जलकर मर गई थी। लोगों के बीच आतंक फैलाने के लिए अंग्रेजों ने बिठूर में लगभग 30,000 पुरुषों महिलाओं और बच्चों को मार डाला तथा उनके शवों को शहर अलग अलग स्थानों पर पेड़ों से टांग दिया।

बिठूर को आज भी ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ़ विरोध करने के लिए तथा यहाँ हुई उस निर्मम हत्याकांड के लिए जाना जाता है।

पत्थर का घाट - 

अठारहवीं शताब्दी में अवध के दीवान महाराजा टिकैत राय बहादुर ने बिठूर में लाल पत्थर की एक स्नान संरचना का निर्माण किया जिसे पत्थर घाट के नाम से जाना जाता है। यह प्राचीन संरचना गंगा नदी के तट पर स्थित है और यहाँ भगवान शिव का मंदिर भी है जिसमें कसौटी पत्थर से बना शिवलिंग है।

ब्रह्मवर्त घाट - 

यह बिठूर के पवित्र घाटों में सबसे पवित्र है। भगवान ब्रह्मा के शिष्य अनुष्ठान स्नान के बाद यहाँ पूजा अर्चना के लिए नित्य प्रतिदिन आते थे, बाद में ब्रह्मा जी के द्वारा स्थापित शिवलिंग पर पूजा अर्चना करते थे। आज के लोग इस शिवलिंग को ब्रह्मेश्वर महादेव के रूप में पूजते हैं। यही वह स्थान है जहाँ ब्रह्मा जी के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की नाल आज भी पूजी जाती है। इस स्थान को हिंदू धर्म के अनुसार मानव जाति के प्रारंभ का जन्मस्थान भी माना जाता है।

इस्कॉन टेम्पल - 

यहाँ स्थित इस्कॉन टेम्पल अपने आप में एक अद्भुत कला का अनूठा। उदाहरण है यह स्कोन टेम्पल कानपुर इंटरनेशनल सोसाइटी फ़ोर कृष्णा कौन से स्नैकस आंदोलन का एक हिस्सा है।

बिठूर और बॉलीवुड का रिश्ता

2016 में आई सलमान खान और अनुष्का शर्मा की बड़ी फ़िल्म सुल्तान की शूटिंग इसी शहर बिठूर में हुई थी।

इसके अलावा बॉलीवुड की फ़िल्म मुंगेरीलाल बी टेक की भी अधिकांश शूटिंग बिठूर में ही हुई है।

जहाँ बिठूर में अधिकांश लोग उत्तर प्रदेश से है परन्तु शहर में एक महत्वपूर्ण मराठी आबादी भी है। बिठूर में बसे प्रवासी मराठी परिवारों के वंशज न केवल तीन पीढ़ियों से अधिक समय से बिठूर में रह रहे हैं बल्कि उनके पास बड़ी मात्रा में जमीन व अन्य अचल संपत्तियां भी हैं। नाना साहब के साथ आने वाले पांच परिवार थे- मोघे, पबलकर, सहज बलकर,हरदेकर,सप्रे। उनमें से अधिकांश बिठूर आसपास के स्थानों में बस गए।

बिठूर पहुंचने के तरीके 

यदि आप बिठूर वायु यात्रा करके पहुंचना चाहते हैं तो बिठूर से 44 किलोमीटर दूर चकेरी में स्थित हवाई अड्डा आपको सबसे निकट पड़ेगा। यदि आप भारतीय रेलवे ये सुविधाओं का आनंद उठाते हुए बिठूर पहुंचते हैं तो 2019 में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटित रेलवे स्टेशन मोहम्मद पुर पर आप उतर सकते हैं। यदि आप कानपुर सेंट्रल उतरते हैं तो वहाँ से आपको 23 किलोमीटर की दूरी तय कर कर बिठूर आना होगा। बिठूर के पास अपना कोई बस स्टेशन तो नहीं है,परन्तु फिर भी आप बहुत आसानी से बस यात्रा करते हुए बिठूर तक पहुँच सकते हैं।